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ना'त-ओ-मनक़बत
ग़ुबार-ए-कूचा-ए-मिर्ज़ा हूँ नक़्श-ए-आब नहींक़ुर्ब हो के मिट्टी मेरी ख़राब नहीं
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
रफ़्तम ब-कू-ए-ख़्वाजा व गुफ़्तम कि ख़्वाजा कूगुफ़्ता कि ख़्वाजा आशिक़-ओ-मस्तस्त-ओ-कू-ब-कू
रूमी
कलाम
शौक़ से ना-कामी की बदौलत कूचा-ए-दिल भी छूट गयासारी उमीदें टूट गईं दिल बैठ गया जी छूट गया
फ़ानी बदायूँनी
ना'त-ओ-मनक़बत
देखी जो फ़ज़ा-ए-कू-ए-नबी जन्नत का ठिकाना भूल गएसरकार का रौज़ा याद रहा दुनिया का फ़साना भूल गए
अ'बिद बरेलवी
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फ़ारसी सूफ़ी काव्य
बुती कू ज़ोहरा-ओ-मह रा हमा शब शेवा आमोज़ददो-चश्म-ए-ऊ ब-जादूई दो-चश्म-ए-चर्ख़ बर-दोज़द
रूमी
ग़ज़ल
मेरे दिल में क्यूँ ख़याल-ए-कूचा-ए-दिल-बर न होबुलबुल-ए-आवारा को याद-ए-चमन क्यूँ-कर न हो
रज़ा फ़िरंगी महल्ली
शे'र
कू-ब-कू फिरता हूँ मैं ख़ाना-ख़राबों की तरहजैसे सौदे का तेरे सर में मेरे घर हो गया
ख़्वाजा हैदर अली आतिश
शे'र
ख़ुदा रक्खे अजब कैफ़-ए-बहार-ए-कू-ए-जानाँ हैकि दिल है जल्वः-सामाँ तो नज़र जन्नत-ब-दामाँ है
अफ़क़र मोहानी
ग़ज़ल
जो हम तर्क-ए-’आलाइक़ कर के कू-ए-यार में आएतो ख़ारिस्ताँ से गोया गुलशन-ए-बे-ख़ार में आए