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ग़ज़ल
किस दिल-जले का कूचे में तेरे ग़ुबार थाहर ज़र्रा उस की ख़ाक का मिस्ल-ए-शरार था
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
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शे'र
तिरे कूचे में क्यूँ बैठे फ़क़त इस वास्ते बैठेकि जब उट्ठेंगे इस दुनिया से जन्नत ले के उट्ठेंगे
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
कूचे में तिरे ऐ जान-ए-ग़ज़ल ये राज़ खुला हम पर आ करग़म भी तो इनायत है तेरी हम ग़म का मुदावा भूल गए
अब्दुल हादी काविश
कलाम
मुम्ताज़ अशरफ़ी
ग़ज़ल
हम उस कूचे को जज़्ब-ए-शौक़ की मंज़िल समझते हैंदर-ए-जानाँ के हर ज़र्रा को अपना दिल समझते हैं
शफ़क़ एमाद्पुरी
शे'र
उस के कूचे में कहाँ कशमकश-ए-बीम-ओ-रजाख़ौफ़-ए-दोज़ख़ भी नहीं ख़्वाहिश-ए-जन्नत भी नहीं