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शे'र
कू-ब-कू फिरता हूँ मैं ख़ाना-ख़राबों की तरहजैसे सौदे का तेरे सर में मेरे घर हो गया
ख़्वाजा हैदर अली आतिश
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
रफ़्तम ब-कू-ए-ख़्वाजा व गुफ़्तम कि ख़्वाजा कूगुफ़्ता कि ख़्वाजा आशिक़-ओ-मस्तस्त-ओ-कू-ब-कू
रूमी
शे'र
सबा की तरह रहा मैं भी कू-ब-कू फिरताहमारे दिल से भी उस गुल की जुस्तुजू न गई
शाह अमीरुद्दीन फ़िरदौसी
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शे'र
ख़ुदा रक्खे अजब कैफ़-ए-बहार-ए-कू-ए-जानाँ हैकि दिल है जल्वः-सामाँ तो नज़र जन्नत-ब-दामाँ है
अफ़क़र मोहानी
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत सय्यद शाह अ’ज़ीज़ुद्दीन हुसैन मुनएमी
जिसको तलाश करता है तू कू-ब-कू अ’ज़ीज़अब देख हर बशर में वो आ के समा गया
रय्यान अबुलउलाई
ना'त-ओ-मनक़बत
देखी जो फ़ज़ा-ए-कू-ए-नबी जन्नत का ठिकाना भूल गएसरकार का रौज़ा याद रहा दुनिया का फ़साना भूल गए
अ'बिद बरेलवी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
बुती कू ज़ोहरा-ओ-मह रा हमा शब शेवा आमोज़ददो-चश्म-ए-ऊ ब-जादूई दो-चश्म-ए-चर्ख़ बर-दोज़द
रूमी
ग़ज़ल
जो हम तर्क-ए-’आलाइक़ कर के कू-ए-यार में आएतो ख़ारिस्ताँ से गोया गुलशन-ए-बे-ख़ार में आए