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शिवदिन केसरी
1563 - 1639
केसरी जामा बदन में उस के देखरंग मेरा ज़ा'फ़रानी हो गया
बैठ कर चौंकिए चंदन पे लगाया ग़ाज़ापहन कर केसरी पोशाक बंधा सर सेहरा
अल्लख जागे, गुरुजी अल्लख जागे।।ध्रु0।।उलट पलट मो दर्सन गाढा रूप रेख बिन पुरुख ठाडा ।।
हजरत अल्ला, सब दुनिया पालनवाला ।।ध्रु0।।जिसका असमान है एक तंबु, धरती जाजम पवना खूंबू
दो दिन तूम भलाई कर रेआखर तेरी मरमर रे ।।ध्रु0।।
केसरीکیسری
saffron
उस पर बल जैये बल जैयेप्रेम प्रीति से रहिये ।।
हम फकीर जनम के उदासी निरंजनवासी ।।ध्रु0।।सत कि भिच्छा दे मेरी माई मन का आटा भरपूर
गुप्त होकर परगट होवे मथुरा गोकुल वासीप्राण निकार सिध्द जो होवे सत्यलोक का वासी ।।
‘चंपावती के मलयंदा के चंद नामक 20-22 वर्ष का पुत्र था। वाटिका में क्रीडार्थ आई हुई
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