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कविता
अन्योक्ति पंचक- मैना तू बन वासिनी, परी पींजरे आनि।
रहे शान्त सुख मान बान कोमल तें अपनी।सब पक्षित सरदार तोंहि कवि कोविद बरनी।।
सय्यद अमीर अली मीर
कविता
अन्योक्ति पंचक- कैदी होने के प्रथम था अलि 'मीर' स्वतंत्र
पड़ा प्रेम में अचल वहां लकड़ी का भेदी।था जो कोमल कमल बनाया उसने कैदी।।
सय्यद अमीर अली मीर
खंडकाव्य
।। रासपञ्चाध्यायी ।।
ता तरु कोमल कनक भूमि मनिमय मोहत मन।दिखियतु सब प्रतिबिम्ब मनौ धर महं दूसर बन।।
नंद दास
महाकाव्य
।। रसप्रबोध ।।
देस काल बुद्धि बचन पुनि कोमल धुनि सुनि कान।औरो उद्दीपन लहै सुख ही छूटत मान।।977।।
रसलीन
छप्पय
दग्ध वृक्ष नहिं नवे नवै सु आहि सु फलतर।
विद्रुम षात न चोट पात सो हीर चोट अति।पाहन भिदै न नीर भिदै सैंधव कोमल मति।।
भीषनजी दादूपंथी
सूफ़ी लेख
महाकवि सूरदासजी- श्रीयुत पंडित रामचंद्र शुक्ल, काशी।
आज कालि तुमहु देखत हौ तपत तरनि सम चंद। सुंदर श्याम परम कोमल तनु, क्यों सहिहैं नँदनद।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
पद
बेनी गंध कहा कोउ जाने मेरी सी तेरी सो राधे।।
बैठे रसिक संवारन बारन कोमल कर ककईं सों राधे।।हरिदास के स्वामी स्यामा नखसिख लों गुथन हीं सो राधे।।