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गूजरी सूफ़ी काव्य
खेल चढ़िया बहरूप खेले
खेल चढ़िया बहरूप खेलेअह निस तिल-भर खेल न मेले
शाह अली जीव गामधनी
पद
धोतराम छोटी बालिका ज्यों गुडिया का खेल ।
धोतराम छोटी बालिका ज्यों गुडिया का खेल ।आनन्द से खेलन लगी नहीं था पति से मेल ।।
धोतरम दास
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पद
उल्टा व्यवहार - होली खेल न जाने बावरिया सतगुरू को दोष लगावे
होली खेल न जाने बावरिया सतगुरू को दोष लगावेहोली खेल न जाने बावरिया सतगुरू को दोष लगावे
शालीग्राम
शबद
गुरु म्हारे समझ किया है खेल
गुरु म्हारे समझ किया है खेलबिन बादल जहाँ बिजली चमके दिवला बले बिन तेल
जीताराम दास
शबद
चेतावनी का अंग - लागो रंग झूठो खेल बनाया
लागो रंग झूठो खेल बनायाजहं लगि ताको सबै पसारा मिथ्या है ये काया
गुलाल साहब
अरिल्ल
अरिल छंद - अर्ध उर्ध को खेल कोऊ नर पावई
अर्ध उर्ध को खेल कोऊ नर पावईचाँद सूर को बाँधि गगन ले जावई
गुलाल साहब
पद
होरी के पद - फागुन के दिन चार रे होरी खेल मना रे
फागुन के दिन चार रे होरी खेल मना रेबिन करताल पखावज बाजै अणहद की झंकार रे
मीराबाई
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(86) डाला था सब को मन भाया। टाँग उठाकर खेल बनाया।।कमर पकड़ के दिया ढकेल। जब होवे वह पूरा खेल।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
(86) डाला था सब को मन भाया। टाँग उठाकर खेल बनाया।। कमर पकड़ के दिया ढकेल। जब होवे वह पूरा खेल।।