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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
बैत
ज़रा ऐ गर्दिश-ए-दौराँ के मारो
ज़रा ऐ गर्दिश-ए-दौराँ के मारोये सोचो हम भी ज़ेर-ए-आसमाँ हैं
अतहर नियाज़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
फ़िराक़-ओ-हिज्र के हालात-ए-ग़म का माजरा सुन लेगुज़रती है जो दिल पर ऐ शह-ए-हर-दोसरा सुन ले
शकील बदायूँनी
दकनी सूफ़ी काव्य
हालात-ए-विलादत आँ-हज़रत
हुआ जा अमीना के मुख पो रौशनकाए जो नूर-ए-ख़ाक आदम कूँ रौशन
करीमुद्दीन सरमस्त
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ना'त-ओ-मनक़बत
आएँ कभी तो ऐसे भी हालात दो घड़ीगुज़रें मदीने पाक में लम्हात दो घड़ी
अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
सर-गश्तगी अज़ गर्दिश-ए-दौराँ ख़बरम दादवज़ आबलः-पा ख़ार-ए-बयाबाँ ख़बरम दाद
हसन इमाम वारसी
सूफ़ी उद्धरण
हालात और वक़्त की तब्दिलियों से बदलने वालेसंबंधों से बेहतर है कि इन्सानअकेला रहे
हालात और वक़्त की तब्दिलियों से बदलने वालेसंबंधों से बेहतर है कि इन्सानअकेला रहे।
वासिफ़ अली वासिफ़
ग़ज़ल
गर्दिश में तख़य्युल का असर देख रहे हैंमंज़िल को भी हम-रंग-ए-सफ़र देख रहे हैं
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
ग़ज़ल
अज़ दैर-ए-मुग़ाँ आया मय-ए-गर्दिश-ए-सहबा मस्तदर बज़्म-ए-फ़ना देखा हर ज़र्रा तमाशा मस्त
आकिफ़ हुसैन शाहवली
फ़ारसी कलाम
अज़ दैर-ए-मुग़ाँ आयम बे-गर्दिश-ए-सहबा मस्तदर मंज़िल-ए-ला-बूदम अज़ बादः-ए-इल्ला मस्त
अल्लामा इक़बाल
कलाम
दिगर-गूँ है जहाँ तारों की गर्दिश तेज़ है साक़ीदिल-ए-हर-ज़र्रा में ग़ोग़ा-ए-रुस्ता-ख़े़ज़ है साक़ी