परिणाम "गुहार"
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काको पुकारूँ मैं दई मारीकोई सुनत ना मोरी गुहार
आयो बसंत नई रुत लागीलाए हैं श्याम गुहार नई
सैयाँ मोरे बाला जोबन रंग जाय होअजब रंग पिया पिया तोरे अनूठी मार रंगी मोहे न गुहार हो
प्रीतम बरखा बड़ी मतवाली ऐसा करे है सिंघार रेसाँसों की माला बनी सुर माला धड़कन से होवे गुहार रे
बस इक निगाह-ए-मुर्शिद-ए-मय-ख़ाना चाहिएपूरबी भाषा पर बेदम शाह वारसी का इतना नियंत्रण है कि कागज़ चाक बन जाता है और लेखनी मिटटी, और बेदम इसे ऐसा घुमाते हैं कि अनगढ़ भाषा भी सुन्दर और सुग्राह्य बन जाती है. जब सूफ़ी इस संसार सागर में अपने आप को फंसा हुआ पाता है और अपने मुर्शिद से पार लगाने की गुहार करता है, इस अवस्था का वर्णन बेदम कुछ यूँ करते हैं –
गुहारگہار
hubbub,outcry
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