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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
सूफ़ी उद्धरण
सूफ़ियों के लिए "इल्म-ए-तौहीद" को जानना ज़रूरी है, क्योंकि तरीक़त और हक़ीक़त की बुनियाद इसी इल्म पर है।
मख़्दूम अशरफ़ जहांगीर
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मल्फ़ूज़
क़ाज़ी हमीदुद्दीन नागौरी
सूफ़ी उद्धरण
इल्म का अर्थ पहचान है। इल्म के ज़रिए ही एक साधक ख़ुदा की बारगाह में ऊँचा मर्तबा हासिल करता है, लेकिन इस के लिए यह ज़रूरी है कि बंदा इल्म पर अमल भी करे।
बहाउद्दीन ज़करिया मुल्तानी
सूफ़ी उद्धरण
आध्यात्मिक ज्ञान (इल्म-ए-बातिनी) की ख़ासियत हैं, नर्मी, खुद को छोटा समझना, रहमदिली और नर्मदिली।
आध्यात्मिक ज्ञान (इल्म-ए-बातिनी) की ख़ासियत हैं, नर्मी, खुद को छोटा समझना, रहमदिली और नर्मदिली।
शाह अब्दुल हई जहाँगीरी
सूफ़ी उद्धरण
वहदत का काम दीद है, जिस की बरकत से नज़र का इल्म हासिल होता है। वो लोग जो ख़ुदा की तलाश में लगे लोगों को वहदत की राह में दूर तक का सफ़र एक ही नज़र में करा देते हैं, उन्हें वहदत का इल्म ख़ुदा की तरफ़ से हासिल होता है।
मुल्ला शाह बदख़्शी
सूफ़ी उद्धरण
ऐ दोस्त! इल्म के ढेर छोड़ दे, तुझे बस एक हर्फ़ की ज़रूरत है - अलिफ़। ज़ाहिरी इल्म का यहाँ कोई मोल नहीं और ये फ़ानी ज़िंदगी भी भरोसे के लायक़ नहीं। बस एक हर्फ़ - अलिफ़, ही तेरा कुल सरमाया है।
बुल्ले शाह
ना'त-ओ-मनक़बत
हक़ीक़त मेरे ख़्वाजा की कोई बे-’इल्म क्या जानेख़ुदा ही ख़ूब जाने है ओ या बस मुस्तफ़ा जाने