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कवित्त
विटप लता कढ़ी है चाप दाप सी बढ़ी है
विटप लता कढ़ी है चाप दाप सी बढ़ी है,सेसर चढ़ी अली अबली सुधरि के।
मुबारक अली बिलग्रामी
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
चुप चाप कब से। सारा गया जब से।।-चूड़ियाँ
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
चुप चाप कब से। सारा गया जब से।। -चूड़ियाँ
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कवित्त
चातक उशीर वीर बकसी समीर धीर
दादुर दरोगा इन्द्र चाप इतमाम घटाजाली बगजाल ठाढ़ो 'खान सुलतान' है।।
खान सुलतान
महाकाव्य
।। अंगदर्पण ।।
नाप नाप चुपचाप ह्वै अतनु छाप धनु आप।आय गह्यो भाव चाप अब परयो जगत के पाप।।30।।
रसलीन
राग आधारित पद
रागिनी टोड़ी तिताला - कैसे आछे सोहत लाल कैसौ मुकट सीस
कैसे आछे सोहत लाल कैसौ मुकट सीसकटि किंकिनी नूपुर रुनक-झुनक ठनकन चाप धरत
तानसेन
ना'त-ओ-मनक़बत
मरक़द से फ़रिश्तों तुम चुप-चाप चले जाओछेड़ा जो मुझे तुम ने कह दूँगा मोहम्मद से
मुज़्तर ख़ैराबादी
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ फ़ख़्रुद्दीन इ’राक़ी रहमतुल्लाह अ’लैह
अ’दन में पज़ीराईः-अ’दन का सुल्तान उनकी शोहरत सुन चुका था और उनकी शाइ’री का मो’तक़िद था।चुनाँचे
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
शैख़ सा’दी का तख़ल्लुस किस सा’द के नाम पर है ?
इस वाक़िआ’ को जिस तरह मैंने लिखा है इस पर ये ए’तराज़ हो सकता है कि
एजाज़ हुसैन ख़ान
सूफ़ी कहानी
दूरबीँ-अंधा, तेज़ सुनने वाला बहरा, और दराज़-दामन नंगा - दफ़्तर-ए-सेउम
अंधे ने कहा देखो एक गिरोह आ रहा है, मैं देख रहा हूँ कि वो कौन
रूमी
सूफ़ी लेख
अभागा दारा शुकोह - श्री अविनाश कुमार श्रीवास्तव
दारा का सिर झुका हुआ था- नेत्र उसके पैरों पर गड़े थे। ऊपर उठकर देखने का
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
अभागा दारा शुकोह
दारा का सिर झुका हुआ था- नेत्र उसके पैरों पर गड़े थे। ऊपर उठकर देखने का