आपकी खोज से संबंधित
परिणाम "चुप-चाप"
अत्यधिक संबंधित परिणाम "चुप-चाप"
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
चुप चाप कब से। सारा गया जब से।।-चूड़ियाँ
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
चुप चाप कब से। सारा गया जब से।। -चूड़ियाँ
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
ना'त-ओ-मनक़बत
मरक़द से फ़रिश्तों तुम चुप-चाप चले जाओछेड़ा जो मुझे तुम ने कह दूँगा मोहम्मद से
मुज़्तर ख़ैराबादी
अन्य परिणाम "चुप-चाप"
कवित्त
विटप लता कढ़ी है चाप दाप सी बढ़ी है
विटप लता कढ़ी है चाप दाप सी बढ़ी है,सेसर चढ़ी अली अबली सुधरि के।
मुबारक अली बिलग्रामी
बैत
रंग महफ़िल का देख कर चुप हैं
रंग महफ़िल का देख कर चुप हैंवो समझते हैं बे-ज़बाँ हैं हम
कामिलुल क़ादरी
ग़ज़ल
मय-कदे में पी के मय अव्वल तो चुप रहना पड़ाबात जब निकली तो साक़ी को ख़ुदा कहना पड़ा
मुज़्तर ख़ैराबादी
शे'र
अरे दिल मिस्ल-ए-बुलबुल चुप हमेशा नाला-ज़न है तूँकहीं गुल-पैरहन गुल-रू की पाया कुछ ख़बर है रे
तुराब अली दकनी
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ फ़ख़्रुद्दीन इ’राक़ी रहमतुल्लाह अ’लैह
अ’दन में पज़ीराईः-अ’दन का सुल्तान उनकी शोहरत सुन चुका था और उनकी शाइ’री का मो’तक़िद था।चुनाँचे
सूफ़ीनामा आर्काइव
सूफ़ी लेख
अभागा दारा शुकोह - श्री अविनाश कुमार श्रीवास्तव
दारा का सिर झुका हुआ था- नेत्र उसके पैरों पर गड़े थे। ऊपर उठकर देखने का
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
अभागा दारा शुकोह
दारा का सिर झुका हुआ था- नेत्र उसके पैरों पर गड़े थे। ऊपर उठकर देखने का