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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ग़ज़ल
हुस्न शैदा है किसी के आरिज़-ए-पुर-नूर परक्यूँ न फिर सदक़े हों परियाँ ऐसे रश्क-ए-हूर पर
इब्राहीम आजिज़
ना'त-ओ-मनक़बत
तू शाह-ए-ख़ूबाँ तू जान-ए-जानाँ है चेहरा उम्मुल-किताब तेरान बन सकी है न बन सकेगा मिसाल तेरी जवाब तेरा
साइम चिश्ती
ना'त-ओ-मनक़बत
अपने चेहरा पर जो तू ज़ुल्फ़-ए-परेशाँ छोड़ देसब्र का क्यूँ कर न 'आशिक़ अपने दामाँ छोड़ दे
मुंशी अब्दुल अज़ीज़
ग़ज़ल
आ’लम-ए-मस्ती है आईना-ए-रुख़ रुख़-ए-पुर-नूर काबे-ख़ुदी में देखते हैं हम तमाशा नूर का
ख़्वाजा नासिरुद्दिन चिश्ती
शे'र
इलाही ख़ैर ज़ोरों पर बुतान-ए-पुर-ग़ुरूर आएकहीं ऐसा न हो ईमान-ए-आ’लम में फ़ुतूर आए