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गूजरी सूफ़ी काव्य
बन्दे हैं तेरी छब के मह से जमालवाले
बन्दे हैं तेरी छब के मह से जमालवाले,सब गुल से गालवाले, संबुल से बालवाले।
अब्दुल वली उज़लत
पद
देखो देखो सखि रे छब बालाकी
देखो देखो सखि रे छब बालाकी ।।ध्रुवपद।।शेषाचल पर आप बिराजे, चौकी हनुमंत लाला की ।
मानिक महाराज
बसंत
मन-मोहन छब दिखलाई सरसों फूली आँखों मेंप्रेम की ज़र्दी मुख पर छाई सरसों फूली आँखों में
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
दकनी सूफ़ी काव्य
मसनवी गुलशने इश्क़
जब इस बज़्म छब की उरूसी दिखायतो ज़ोहर हो ज्यों दिप मने जल्वा गाय
नुसरती
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सूफ़ी लेख
उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में - मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी
ये छब देख अचरज भयो छुरी कुंद हो जाय17۔ उम्मीद हस्त कि बे-गानगी-ए-उ’र्फ़ी रा
ज़माना
राग आधारित पद
मनमोहन मोरे मन मां बसत हैं ढूँढ फिरि जग सारा री
श्याम सुंदर की छब से न्यारी कैसा बना मतवारी
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
पद
किसन के चरणन की बलिहारी
किसन के चरणन की बलिहारीमोरमुकुट पीताम्बर सोभे कुंडल की छब न्यारी
दयालनाथ महाराज
ना'त-ओ-मनक़बत
ज़ुहद-ओ-तक़्वा इस्तक़ामत सब्र-ओ-इस्तिक़लाल कीमर्हबा ख़ैरुन्निसा जैसी ही छब ज़ैनब में है
ताहिर ख़ान
कृष्ण भक्ति संत काव्य
कानन कुंडल की छब आला गले सुहावत बैजयंतीमालाअजी जसोमत तनुरंग काला गहरा जमुना का जल काला