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ना'त-ओ-मनक़बत
कुछ हम को नहीं जन्नत-ए-फ़िरदौस की ख़्वाहिशहाँ हुए नसीब अपने तईं कू-ए-मोहम्मद
ख़लील सफ़िपुरी
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शे'र
गुलशन-ए-जन्नत की क्या परवा है ऐ रिज़वाँ उन्हेंहैं जो मुश्ताक़-ए-बहिश्त-ए-जावेदान-ए-कू-ए-दोस्त
अमीर मीनाई
शे'र
गुलशन-ए-जन्नत की क्या परवा है ऐ रिज़वाँ उन्हेंहैं जो मुश्ताक़-ए-बहिश्त-ए-जावेदान-ए-कू-ए-दोस्त
अमीर मीनाई
ना'त-ओ-मनक़बत
बहार-ए-बाग़-ए-जन्नत है बहार-ए-रौज़ा-ए-साबिरज्वार-ए-अ’र्श-ए-आ’ला है ज्वार-ए-रौज़ा-ए-साबिर
बेदम शाह वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
मुल्क-ए-जन्नत है अगर शान-ए-वक़ार-ए-फ़ातिमाघर में चक्की पीसना भी है शिआ'र-ए-फ़ातिमा
अस'अद रब्बानी
ना'त-ओ-मनक़बत
देखी जो फ़ज़ा-ए-कू-ए-नबी जन्नत का ठिकाना भूल गएसरकार का रौज़ा याद रहा दुनिया का फ़साना भूल गए
अ'बिद बरेलवी
शे'र
वो ऐ 'सीमाब' क्यूँ सर-ग़श्तः-ए-तसनीम-ओ-जन्नत होमयस्सर जिस को सैर-ए-ताज और जमुना का साहिल है
सीमाब अकबराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
बाग़-ए-जन्नत से भी बढ़ कर है मदीने की ज़मींकिस की ख़ुश्बू से मो'अत्तर है मदीने की ज़मीं
ताहा अज़ीज़
शे'र
मिला क्या हज़रत-ए-आदम को फल जन्नत से आने कान क्यूँ उस ग़म से सीन: चाक हो गंदुम के दाने का