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ग़ज़ल
ज़हे क़िस्मत पसंद-ए-ख़ातिर-ए-मुश्किल पसंद आयाअज़ल से छाँट कर लाए थे हम जो दिल पसंद आया
अशफ़ाक़ हुसैन मारहरवी
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ना'त-ओ-मनक़बत
पहुँचा है कहाँ सिलसिला उस का ज़हे क़िस्मतहासिल है जिसे बै'अत-ए-मख़्दूम बिहारी
शाह अशरफ़ गयावी
ना'त-ओ-मनक़बत
है तमन्ना उस की आँखों को 'निज़ामी' चूम लूँजिस ने देखा है ज़हे-क़िस्मत दयार-ए-फ़ातिमा
अमीर हमज़ा निज़ामी
ना'त-ओ-मनक़बत
मुबारक हों ये रोज़ों के मुक़द्दस दिन मुसलमाँ कोज़हे क़िस्मत 'शकील' इन साअ'तों के क़द्र-दाँ तुम हो
शकील बदायूँनी
ना'त-ओ-मनक़बत
ज़हे क़िस्मत जिसे वाबस्तगी है उन के दामन सेकि वज्ह-ए-सरफ़राज़ी-ए-दो-’आलम उन का दामाँ है
क़सिमुल हक़ गयावी
ना'त-ओ-मनक़बत
'इश्क़-ए-सरकार से ख़ाली ज़हे क़िस्मत अपनादिल न था और न है और कभी ना हो आमीन
डॉ. मंसूर फ़रिदी
ना'त-ओ-मनक़बत
अ'ली का मर्तबा ज़ाहिर है बे-शक उन घरानों सेज़हे क़िस्मत निशान-ए-बे-निशाँ हैं औलिया-अल्लाह
हबीबुल्लाह साग़र वारसी
ना'त-ओ-मनक़बत
मता-ए'-दीन-ओ-दुनिया हेच है इक जाम के बदलेज़हे क़िस्मत कि हाथों में 'अली का जाम आता है