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दोहा
मन गयंद छवि मद छके, तोर जंजीरन जात।
मन गयंद छवि मद छके, तोर जंजीरन जात।हित के झीने तार सों, सहजै ही बंधि जात।।
रसनिधि
दोहा
दक्षिण पिय सुन कान दे, दक्षिण दक्षिण जात।
दक्षिण पिय सुन कान दे, दक्षिण दक्षिण जात।लक्षण लक्षण गक्षि के, लक्षण ही लगि जात।।
गोपाल चंद्र मिश्र
कुंडलिया
चितावनी - क्या सोवै तू बावरी चाला जात बसंत
क्या सोवै तू बावरी चाला जात बसंतचाला जात बसंत कंत ना घर में आये
पलटू साहेब
दोहा
इंद्रियों का बर्णन - जित जित इन्द्री जात है तित मन कूँ ले जात
जित जित इन्द्री जात है तित मन कूँ ले जातबुधि भी संगहि जात है ये निस्चय करि बात
चरनदास जी
दोहा
सखि सग जात हुती सुती, भट भेरो भो जानि।
सखि संग जात हुती सुती, भट भेरो भो जानि।सतरौंही भौंहन करी, बतरौंहीं अखियानि।।
रामसहाय दास
दोहा
यह बूझन को नैन ये, लग लग कानन जात।
यह बूझन को नैन ये, लग लग कानन जात।काहू के मुख तुम सुनी, पिय आवन की बात।।
रसनिधि
पद
कबहुँ कबहुँ मन इत उत जात यातें कौन है अधिक सुख।
कबहुँ कबहुँ मन इत उत जात यातें कौन है अधिक सुख।बहु भांतिन तें घर आनि राखो नाहिं तो पावतो दुख।।
हरिदास
दोहा
राखे दक्षिण तें अबै, जो दिसि पश्चिम जात।
राखे दक्षिण तें अबै, जो दिसि पश्चिम जात।ताके अब सुन लीजिये, प्यारी ! सुख अवदात।।
गोपाल चंद्र मिश्र
सवैया
नटखट कृष्ण और मुरली प्रभाव- आज महूँ दधि बेचन जात ही मोहन रोकि लियौ मग आयौ।
आज महूँ दधि बेचन जात ही मोहन रोकि लियौ मग आयौ।माँगत दान में आन लियौ सु कियौ निलजी रस जोबन खायौ।।
रसखान
दोहा
रहिमन भेषज के किए काल जीति जो जात
रहिमन भेषज के किए काल जीति जो जातबड़े बड़े समरथ भए तौ न कोउ मरि जात