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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
सूफ़ी शब्दावली
शे'र
गुज़र जा मंज़िल-ए-एहसास की हद से भी ऐ 'अफ़्क़र'कमाल-ए-बे-खु़दी है बे-नियाज़-ए-होश हो जाना
अफ़क़र मोहानी
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ग़ज़ल
है एहसास-ए-ख़ुदी सब को कोई मोमिन हो या काफ़िरचला सब पर तिरा जादू पढ़ा सब ने तिरा मंतर
मयकश अकबराबादी
सूफ़ी कहावत
जादा-ए-दुज़्द ज़दा ता चहल रोज़ ऐमन अस्त।
रास्तों पर हमले के बाद रास्ता चालीस दिन तक सुरक्षित रहता है।
वाचिक परंपरा
ग़ज़ल
इक बसीत-ए-एहसास इक शौक़-ए-नुमायाँ चाहिएइ'श्क़ की नब्ज़ों में रक़्स मौज-ए-तूफ़ाँ चाहिए
अख़तर अ’लीगढ़ी
शे'र
जब चाहने वाले ख़त्म हुए उस वक़्त उन्हें एहसास हुआअब याद में उन की रोते हैं हँस हँस के रुलाना भूल गए
कामिल शत्तारी
शे'र
दफ़्न हूँ एहसास की सदियों पुरानी क़ब्र मेंज़िंदगी इक ज़ख़्म है और ज़ख़्म भी ताज़ा नहीं