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दोहा
दिपती बुझती एक पल, जानो बरस पचास।
दिपती बुझती एक पल, जानो बरस पचास।जीकन देख दीस की, बरस न अंत न मास।।
शेख़ अहमद खट्टू
सूफ़ी उद्धरण
अपने बाहरी रूप से ज़्यादा अंदर के रूप को जानो।
अपने बाहरी रूप से ज़्यादा अंदर के रूप को जानो।
बाबा फ़रीद
ग़ज़ल
ये प्यार मोहब्बत की रमज़ें या तुम जानो या हम जानेंया तुम समझो या हम समझें या तुम जानो या हम जानें
अकबर वारसी मेरठी
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शे'र
ख़ुदा भी जब न हो मालूम तब जानो मिटी हस्तीफ़ना का क्या मज़ा जब तक ख़ुदा मालूम होता है
मुज़्तर ख़ैराबादी
पद
जो जानो हो छोड़ोगे सब संग संघाती देस और राज
जो जानो हो छोड़ोगे सब संग संघाती देस और राजदौलत-ए-दुनिया जमा करो हो महल उठाओ कह के काज
कवि दिलदार
पद
जो आशिक़ सादिक़ है जानो सिवा यार नहीं काम उन्हें
जो आशिक़ सादिक़ है जानो सिवा यार नहीं काम उन्हेंबे देखे 'दिलदार' को अपने इक दम नहि आराम उन्हें
कवि दिलदार
कविता
गाना- ना जानो सइयां सो का होय बतियां।
ना जानो सइयां सो का होय बतियां।उनके मन की जुगत नहि सीखेऊँ,
करीम बख़्श
छंद
मुख सरद चन्द्र पर ठहर गया जानो के बुद पसीने का।
मुख सरद चन्द्र पर ठहर गया जानो के बुंद पसीने का।या कुन्दन कमल कली ऊपर झमकाहट रक्खा मीने का।।
सीतल
साखी
पिया मेरे और मैं पिया की, कुछ भेद न जानो कोई।
पिया मेरे और मैं पिया की, कुछ भेद न जानो कोई।जो कुछ होय सो मौज से होई, पिया समरथ करें सोई।।
शालीग्राम
दकनी सूफ़ी काव्य
जवाहर उल इसरारे अल्ला 1.2 हासिल सब कुरान का है इतना जानो
हासिल सब कुरान का है इतना जानोवहम दुई का दूर करो होर मुँझे पछानों
माशूक़ अल्लाह
ग़ज़ल
उन्हें रब की 'अता क्या है न तुम जानो न हम जानेंमक़ाम-ए-मुस्तफ़ा क्या है न तुम जानो न हम जानें
डॉ. मंसूर फ़रिदी
ना'त-ओ-मनक़बत
उन्हें रब की 'अता क्या है न तुम जानो न हम जानेंमक़ाम-ए-मुस्तफ़ा क्या है न तुम जानो न हम जानें
डॉ. मंसूर फ़रिदी
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
घट ही खोजो भाई।।2।।बाहर भीतर एकै जानो,