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सूफ़ी कहानी
एक हम-राही का हज़रत-ए-ई’सा से हड्डीयों का जिला देने पर इसरार करना- दफ़्तर-ए-दोम
एक बे-वक़ूफ़ हज़रत-ए-ईसा’ का शरीक-ए-सफ़र था उसने एक गहरे गढ़े में हड्डियां देखकर कहा कि ऐ
रूमी
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गूजरी सूफ़ी काव्य
पिउ है वतन तू है सरा पस आप कूँ छोड़ कर
पिउ है वतन तू है सरा पस आप कूँ छोड़ करहुब्बुलवतन ईमान है पिउ की तरफ़ चले ऐ सखी
पीर सय्यद मोहम्मद अक़दस
नज़्म
वतन के मुहाफ़िज़ का पैग़ाम अपनी माँ के नाम
दूर रह कर तिरी फ़ुर्क़त भी गवारा है मुझेघर से तो जंग का मैदाँ ही प्यारा है मुझे