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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
दर दरिया-ए-’इरफ़ानी शहंशाहे हफ़ीज़ुल्लाहगुल बाग़ ख़ुदा दाने शहंशाहे हफ़ीज़ुल्लाह
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
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शे'र
इम्दाद अ'ली उ'ल्वी
फ़ारसी कलाम
दुर-ए-दरिया-ए-’इरफ़ानी शहंशाहे हफ़ीज़ुल्लाहगुल-ए-बाग़-ए-ख़ुदा-दाने शहंशाहे हफ़ीज़ुल्लाह
मख़्दूम ख़ादिम सफ़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
ऐ मेरे दरिया-दिल साक़ी मीर-ए-मय-ख़ाना अ’ब्दुल-हक़अपने मय-ख़्वारों का सदक़ा भर दे पैमाना अ’ब्दुल-हक़
बेदम शाह वारसी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
यक शबे ग़व्वास बूदम बर लब-ए-दरिया-ए-'इश्क़सद हज़ाराँ दुर्र-ओ-गौहर दीदम अज़ दरिया-ए-'इश्क़
रूमी
शे'र
हम ऐसे ग़र्क़-ए-दरिया-ए-गुन: जन्नत में जा निकलेतवान-ए-लत्मः-ए-मौज-ए-शफ़ाअत हो तो ऐसी हो
आसी गाज़ीपुरी
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
तु दीदी हेच माही रा कि ऊ शुद सैर अज़ दरियातु दीदी हेच नक़्शे रा कि अज़ नक़्क़ाश ब-गुरेज़द
रूमी
शे'र
ख़ुदा का शुक्र है प्यासे को दरिया याद करता हैमुसाफ़िर ने फ़राहम कर लिया है कूच का सामाँ
नाज़ाँ शोलापुरी
ना'त-ओ-मनक़बत
घटाएँ ग़म की छाई हैं मुक़द्दर के सितारे परबे-ख़िराम-ए-दरिया-ए-ग़म में हूँ तुम्हारे ही सहारे पर
बाक़ीर शाहजहांपुरी
रूबाई
दरिया जू भरे दम तो कहें उस को बुख़ारजब दम मुतराकिम हुए तब अब्र-ए-शुमार