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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
दिल में दर्द-ए-शह-ए-कौनैन की दौलत है बड़ीहूँ तो नादार मैं लेकिन मिरी क़ीमत है बड़ी
मुनव्वर बदायूँनी
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कलाम
दिल जिगर को आश्ना-ए-दर्द-ए-उल्फ़त कर दियाइक निगाह-ए-नाज़ ने सामान-ए-राहत कर दिया
अब्दुल हादी काविश
ना'त-ओ-मनक़बत
यही दर्द-ए-ज़िंदगी है इसी दर्द में मज़ा हैतेरा नाम जब लिया मेरा दिल तड़प उठा है
शिवा बरेलवी
ग़ज़ल
ग़म-ए-जिगर-शिकन-ओ-दर्द-ए-जाँ-सिताँ देखातुम्हारे इ'श्क़ में क्या क्या न मेहरबाँ देखा