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फ़ारसी कलाम
बे-हिजाबानः दर आ अज़ दर-ए-काशान:ए-माकि कसे नीस्त ब-जुज़ दर्द-ए-तू दर ख़ान:-ए-मा
शैख़ अब्दुल क़ादिर जिलानी
सूफ़ी कहावत
न सब्र दर दिल-ए-आशिक़, न आब दर गि़रबाल
प्रेमी के दिल में धैर्य वैसे ही नहीं हो सकता, जैसे छलनी में पानी को रखा नहीं जा सकता।
वाचिक परंपरा
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
कसे कंदर सफ़-ए-गब्राँ ब-बुतख़ान: कमर बंददबराबर के बुवद वा आँ कि दिल दर ख़ैर-ओ-शर बंदद
हकीम सनाई
फ़ारसी कलाम
दर हुस्न-ए-रुख़-ए-ख़ूबाँ पैदा हम: ऊ दीदमदर चश्म-ए-निको-रूयाँ ज़ेबा हम: ऊ दीदम
फ़ख़रुद्दीन इराक़ी
फ़ारसी कलाम
गरचे दर इ'श्क़-ए-तू रुस्वा-ए-जहानम ऐ शोख़अज़ बराए तू शब-ओ-रोज़ ब-जानम ऐ शोख़
अज़ीज़ सफ़ीपुरी
ना'त-ओ-मनक़बत
मेरा का’बा-ए-तमन्ना दर-ए-पाक-ए-मुस्तफ़ाईमेरी ज़िंदगी का हासिल उसी दर की जब्हा-साई
बह्ज़ाद लखनवी
बैत
चुनान अस्त दर महतरी शर्त-ए-ज़ीस्त
चुनान अस्त दर महतरी शर्त-ए-ज़ीस्तकि हर कुहतरे रा बदानी कि कीस्त