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कलाम
लिख हज़ार किताबाँ पढ़ के दानिश-मंद सदीवे हूनाम फ़क़ीर तहें दा 'बाहू' क़ब्र जिन्हाँ दी जीवे हू
सुल्तान बाहू
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ना'त-ओ-मनक़बत
दर-ए-मुर्शिद से दिल के तार जब टकराने लगते हैंतसव्वुर में ज़ियारत के मज़े हम पाने लगते हैं
अब्दुल ख़ालिक़ दानिश
ना'त-ओ-मनक़बत
कभी धरती से जाता है कभी अम्बर से जाता हैपयाम-ए-हक़ ज़माने में हर इक मंज़र से जाता है
अब्दुल ख़ालिक़ दानिश
ना'त-ओ-मनक़बत
ऐसा हुआ न कोई भी शाह-ए-ज़मन के बा'दआया हो लौट कर जो ख़ुदा से मिलन के बा'द
अब्दुल ख़ालिक़ दानिश
कलाम
अपने दीवाने को ज़ालिम इस तरह तड़पा न अबमस्त नज़रों से पिला कर कह भी दे दीवाना अब
अब्दुल ख़ालिक़ दानिश
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
लाफ़-ए-दानिश मी-ज़नी ख़ुद रा नमी दानी चे सूददा'वा-ए-दिल मी-कुनी-ओ-ग़ाफ़िल अज़ जानी चे सूद
रूमी
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-ख़ैर : हज़रत शाह ग़फ़ूरुर्रहमान हम्द काकवी
कमालाबाद उ’र्फ़ काको की क़दामत के तो सब क़ाएल हैं।आज से 700 बरस क़ब्ल मुस्लिम आबादी
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
ज़िक्र-ए-खैर : हज़रत शाह अय्यूब अब्दाली
बिहार की सर-ज़मीन हमेशा से मर्दुम-ख़ेज़ रही है। न जाने कितने इल्म ओ अदब और फ़क़्र
रय्यान अबुलउलाई
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
ब-ग़ैर अज़ाँ कि बे-शुद दीन-ओ-दानिश अज़ दस्तमबया ब-गो कि ज़े-इश्क़त चे तरफ़ बर बस्तम