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जिस तौं मारहु दाव धरि सो तेरे गल लाग
जिस तौं मारहु दाव धरि सो तेरे गल लागतेरे मारे जो मरहिं बाड़ तिन्हा के भाग
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
सूफ़ी लेख
आलोचना- महाकवि बिहारीदास जी की जीवनी-मयाशंकर याज्ञिक
दिन दाव दूव लीजै रातैं करि राखिए।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
पद
चेतावनी -घट भीतर तू जाग री, है सुरत पुरानी ।
काल दाव मारत रहा, पर तू न चितानी।अब सतगुरु की मेहर से, मौसम बदलानी।।
शिवदयाल सिंह
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पद
चैत- चैत निरजीवै न कोई, जीव जम को ग्रास है ।
राम भजु मन पाय नर तन, बनो अच्छो दाव रे ।ऐसो अवसर खोय के, फिर मूढ़ गोता खाव रे ।।
तुलसीदास (ब्रजवासी)
ग़ज़ल
कभी ख़ुश हो के करते हो 'सिराज' अपने की जाँ-बख़्शीकभी उस के बुझा देने कूँ क्या क्या दाव करते हो
सिराज औरंगाबादी
साखी
प्रेम का अंग - प्रेम पियारे लाल सों मन दे कीजै भाव
प्रेम पियारे लाल सों मन दे कीजै भावसतगुरु के प्रसाद से भला बना है दाव
कबीर
पद
ककहरा - जज्जा जिन जिन सुरति सँवार काल डर ना रही
लिया अगमपुर धाय जाय पिउ भेंटियाअरे हाँ रे तुलसी जन्म जन्म भ्रम भाव दाव दुख मेटिया
तुलसी साहिब हाथरस वाले
भजन
जो राम रत जाने नहीं बंभन हुआ तो क्या हुआ
पोई बगल में दाव कर कहता फिरै हैगा कियाअपनी किया जाने नहीं पंडित हुआ तो क्या हुआ