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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
तिरे हुस्न का करिश्मा मिरी हर बहार ख़्वाजातिरे ग़म का इक शगूफ़ा दिल-ए-दाग़दार ख़्वाजा
कामिल शत्तारी
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क़िता'
अफ़सर नारवी
ग़ज़ल
फ़स्ल-ए-गुल का ग़म दिल-ए-नाशाद पर बाक़ी रहाहश्र लग ये मुज़लिमा सय्याद पर बाक़ी रहा
सिराज औरंगाबादी
कलाम
अज़्म-ए-फ़रियाद! उन्हें ऐ दिल-ए-नाशाद नहींमस्लक-ए-अहल-ए-वफ़ा ज़ब्त है फ़रियाद नहीं
सीमाब अकबराबादी
ना'त-ओ-मनक़बत
है शम्-ए'-तजल्ली रुख़-ए-दिल जु-ए-मोहम्मदपरवाना-सिफ़त खिंचते हैं दिल सू-ए-मोहम्मद
अख़तर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
ख़ार-ए-हसरत दिल में लेकर उट्ठे बज़्म-ए-यार सेये वो कांटे हैं जिन्हें लाए हैं हम गुलज़ार से
शम्शाद लखनवी
ना'त-ओ-मनक़बत
है दिल में जल्वा-ए-रुख़-ए-ताबान-ए-मुस्तफ़ाक़िंदील-ए-का'बा है तह-ए-दामान-ए-मुस्तफ़ा