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ना'त-ओ-मनक़बत
हम तो हैं आप दिल-फ़िगार ग़म में हँसी है नागवारछेड़ के गुल को नौ-बहार-ए-ख़ून हमें रुलाए क्यूँ
अहमद रज़ा ख़ान
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ग़ज़ल
मिरा दिल उस पे नाज़ाँ है कि दिल हूँ पर मैं वो दिल हूँज़माना जिस का मजनूँ है मैं उस लैला का महमिल हूँ
बेदम शाह वारसी
कलाम
दिया होता किसी को दिल तो होती क़द्र भी दिल कीहक़ीक़त पोछिए जा कर किसी बिस्मिल से बिस्मिल की