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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
फ़ारसी कलाम
अज़ बयान-ए-ईं-ओ-आँ ख़ामोश ब-नशीं ऐ 'नियाज़'बाश मुसतग़रक़ ब-दीदार-ए-रुख़-ए-जानान-ए-दिल
शाह नियाज़ अहमद बरेलवी
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शे'र
कहीं है आँख आ’शिक़ की कहीं दीदार-ए-जानाँ हैबहार-ए-हुस्न-इ-ताबाँ में तू ही तू है तू ही तू है
चौधरी दल्लू राम
ग़ज़ल
दिल-ए-दीवाना अगर क़ाबिल-ए-दीदार न थाउन शिकस्तों के भी लाएक़ तो मिरे यार न था
ख़्वाजा रुक्नुद्दीन इश्क़
फ़ारसी कलाम
नमी दानम कि आख़िर चूँ दम-ए-दीदार मी-रक़्सममगर नाज़म ब ईं ज़ौक़े कि पेश-ए-यार मी-रक़्सम
हकीम नज़्र अशरफ़ अशरफ़ी
ना'त-ओ-मनक़बत
ख़ुद ख़ुदा तालिब हुआ है बारहा दीदार काख़ुद समझ लो कैसा होगा हुस्न-ए-रू-ए-यार का