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बैत
कसाने कि पैग़ाम-ए-दुश्मन बरंद
कसाने कि पैग़ाम-ए-दुश्मन बरंदज़े-दुश्मन हमाना कि दुश्मन तरंद
सादी शीराज़ी
बैत
ज़े-दुश्मन शिनौ सीरत-ए-ख़ुद कि दोस्त
ज़े-दुश्मन शिनौ सीरत-ए-ख़ुद कि दोस्तहराँचे ज़ तू आयद ब चश्मश नकोस्त
सादी शीराज़ी
बैत
कसे जाँ ज़े-आसेब-ए-दुश्मन ब-बुर्द
कसे जाँ ज़े-आसेब-ए-दुश्मन ब-बुर्दकि मर दोस्ताँ रा ब दुश्मन शुमुर्द
सादी शीराज़ी
होली
आ मन में हम रंग बिखेरें मुआफ़ करें दुश्मन कोआ नेकी की होली खेलें प्यार करें दुश्मन को
सय्यद नायाब मियाँ
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ग़ज़ल
हुए दोस्त दुश्मन मेरे ऐ जाँ तेरी फ़ुर्क़त मेंमिस्ल सच है नहीं अपना कोई होता मुसीबत में
कौसर ख़ैराबादी
सूफ़ी कहावत
सह चीज़ अस्त कि अगर हक़ीक़त बाशद आंरा इस्तिहक़ार नशायद कर्द. बीमारी ओ वाम ओ दुश्मन
तीन चीज़ों को कमज़ोरी समझना नहीं चाहिए, चाहे वो जितनी ही छोटी लगे: बीमारी, कर्ज़ और दुश्मन।
वाचिक परंपरा
सूफ़ी कहावत
चराग़-ए- के ऊ ख़ानः रौशन कुनद बरूख़त उफ़्ताद कार-ए-दुश्मन कुनद
वो चिराग जो घरों को रोशनी देता है, अगर वह किसी के कपड़ों पर गिरे, तो दुश्मन की तरह काम करेगा।
वाचिक परंपरा
ग़ज़ल
इस परी को ख़ानः-ए-दुश्मन में मेहमाँ देख करख़ूँ रोता हूँ मैं सू-ए-चर्ख़-ए-गर्दां देख कर
कौसर ख़ैराबादी
ग़ज़ल
मोहब्बत से न देखो तुम तो दुश्मन की नज़र देखोख़फ़ा होकर बिगड़ कर रूठ कर देखो मगर देखो
सफ़ी औरंगाबादी
क़िता'
शैतान-ओ-नफ़्स दोनों दुश्मन तिरे मगरदुश्मन वो दूर का है ये दुश्मन क़रीब का
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
सूफ़ी कहावत
हरगिज़ बदी कि तवानी ब दुश्मन मरसां मुबादा कि रोज़ी दोस्त गर्दद
अपने दुश्मन के साथ बुरा न करें, क्योंकि हो सकता है शायद किसी दिन वह आप का दोस्त बन जाए
वाचिक परंपरा
सूफ़ी कहावत
हर कि गर्दन बदावा अफ़राज़द। दुश्मन अज़ हर तरफ़ बदू ताज़द।
वह जो अपने सर को दावे से ऊंचा उठाता है, उस पर सभी ओर से दुश्मन हमला कर सकते हैं।
वाचिक परंपरा
कलाम
आक़िल रेवाड्वी
सलोक
फ़रीदा जे दर लगे नेहु सो दर नाहीं छडना
फ़रीदा जे दर लगे नेहु सो दर नाहीं छडनाआहन पवह भावैं मेहु सिर ही उपर झल्लना