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दकनी सूफ़ी काव्य
महाराज कोण लीला धरे हो
महाराज कोण लीला धरे होअनन्त ब्रह्माण्ड जाके उदर मों
केशव स्वामी
कलाम
सभी ज़ात सिफ़ात से हो निर्मल जब साधू सुन माँह ध्यान धरेसुमर सुमर सिमरन से परे नारायण हरे नारायण हरे
मीराँ भीख
पद
दौलत निसान बान धरे खुदी अभिमान,
दौलत निसान बान धरे खुदी अभिमान,करत न दाया काहू जीव को जगत में ।
केशवदास
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पद
मुरली के पद - मुरलियाँ कैसे धरे जिया धीर
मुरलियाँ कैसे धरे जिया धीरमधुवन बाज वृन्दावन बाजी तट जमुना के तीर
मीराबाई
पद
हाय में तस्बीह गले में कुर्ता सर पर टोपी धरे हुए
हाय में तस्बीह गले में कुर्ता सर पर टोपी धरे हुएदेखो शैख़ जी आते हैंगे मक्र से सारे भरे हुए
कवि दिलदार
पद
जोगी जती सती सन्यासी अवधूत जोग अडंबर भावै तुझ भेख धरे
जोगी जती सती सन्यासी अवधूत जोग अडंबर भावै तुझ भेख धरेजप तप तें संजम जम कत दुख हरे करत सब दुख हरे
बैजू बावरा
बाउल गान
वॉका नदीर पिछल घाटे पार हवि कि करे रे
सेथाय युद्धे यावि तीर छुडिवियावि दिवि धरे रे।।
गोसाईं विप्र
महाकाव्य
।। अंगदर्पण ।।
मानों कंचन घट धरे मरकत कलस अनूप।।133।।।। रोमावलीयुत कुचस्यामता-वर्णन ।।
रसलीन
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-बर्रे का छाता(65) श्यामबरन पीतांबर काँधे, मुरली धरे न होय।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-बर्रे का छाता (65) श्यामबरन पीतांबर काँधे, मुरली धरे न होय।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
कुंडलिया
साईं अवसर के पड़े, को न सहै दुख द्वन्द।
वै राजा हरिचन्द, करै मरघट रखवारी।धरे तपस्वी वेष, फिरे अर्जुन बलधारी।।