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दोहा
ज्ञानी पंडित यूँ कहें सूर्ज की देखो धूप
ज्ञानी पंडित यूँ कहें सूर्ज की देखो धूपसुंदर त्रिया सुडौल पुत्र नारायण का रूप
औघट शाह वारसी
दोहा
विनय मलिका - धूप हरै छाया करै भोजन को फल देत
धूप हरै छाया करै भोजन को फल देतसरनाये की करत है सब काहू पर हेत
दया बाई
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
काया धूप दीप नैवेदा,काया पूजों पाती।।1।।
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-धूप(104) पीके नाम से बिकत है, कामिन गोरी गात।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-धूप (104) पीके नाम से बिकत है, कामिन गोरी गात।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
चौपाई
पद्मावत 1.1 सँवरौं आदि एक करतारू । जेइँ जिउ दीन्ह कीन्ह संसारू ।
कीन्हेसि धूप सीउ औ छाहाँ । कीन्हेसि मेघ बीजु तेहि माहाँ ।।1।।
मलिक मोहम्मद जायसी
दकनी सूफ़ी काव्य
मसनवी दर फ़वायद बिस्मिल्ला
बदन पर है बस धूप का जामा साफ़हुआ चाँदनी का निहाली लिहाफ़
गुलामनबी हैदराबादी
दकनी सूफ़ी काव्य
मोहिउद्दीन दर मनाक़ब हज़रत अब्दुल क़ादर
खड़े ओ धूप में मस्जिद के उनकीदेखे मीरा अथे तख़्ती कतें ले
हुसैनी
दकनी सूफ़ी काव्य
वाह वाह बुलबुले गुलज़ार इश्क़
तब दिया हातिफ़ ने उसको यो निदाधूप में जा बैठ ऐ मर्दे गदा