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कविता
जिन्हों घर झूलते हाथी, हजारों लाख थे साथी
नकारा कूच का बाजे, कि मारू मौत का बाजै,ज्यो सावन मेधला गाजै, तू खुशकर नीद क्यों सोया?
खालस
समस्त