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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
कलाम
जिसे दीद तेरी नसीब हो वो नसीब क़ाबिल-ए-दीद हैकि शब-ए-बरात है रात उसे दिन उस के वास्ते 'ईद है
अश्क रामपुरी
सूफ़ी उद्धरण
ख़ुश-नसीब इन्सान वो है जो अपने नसीब पर ख़ुश रहे।
ख़ुश-नसीब इन्सान वो है जो अपने नसीब पर ख़ुश रहे।
वासिफ़ अली वासिफ़
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ना'त-ओ-मनक़बत
रब्ब-ए-क़ादिर मुक़्तदिर की क़ुदरतें उन को नसीबजा-निशीनी नबी की शौकतें उन को नसीब
सय्यद फ़ैज़ान वारसी
कलाम
बनायी मुझ बेनवा की बिगड़ी नसीब मेरा जगा दियातेरे करम के निसार तूने मुझे भी जीना सिखा दिया
फ़ना बुलंदशहरी
ग़ज़ल
चैन से रहने न दे गा इज़्तिराब-ए-दिल मुझेवर्ना फ़ुर्क़त में भी जी लेना न था मुश्किल मुझे
अख़तर नासेह नसीब
कलाम
बनाई मुझ बे-नवा की बिगड़ी नसीब मेरा जगा दियातेरे करम के निसार तू ने मुझे भी जीना सिखा दिया