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छप्पय
आहि पुहुप जिमि बास प्रगट तिमि बसै निरंतर।
आहि पुहुप जिमि बास प्रगट तिमि बसै निरंतर।ज्यों तिलयिन में तेल मेल यों नाहिन अंतर।।
भीषनजी दादूपंथी
दोहा
उपदेश का अंग - राम नाम दुइ अच्छरै रटै निरंतर कोय
राम नाम दुइ अच्छरै, रटै निरंतर कोय'दूलन' दीपक बरि उठै मन प्रतीति जो होय
दूलनदास जी
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
कह बरनों अनुरूपी।निरगुन नाम निरंतर निरखों,
हिंदुस्तानी पत्रिका
चौपाई
जैसो 'कुम्भ' 'अम्भ' मँह थेव।
बाहर भीतर 'कहा' न जाय।'सरब निरंतर' एकै 'काय'।।
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
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राग आधारित पद
राग बसंत- जल थल म्हेल और आकास।
बाहर 'भीतर' कहा न जाय।सरब निरंतर एकै काय।।
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
राग आधारित पद
राग मारू- जान अजान सभ खेलै लोइ।
'सभ खेलहिं' सखि 'मन मंह जान'।'सरब निरंतर पीय प्रवान'।।
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
पद
अबिनासी दूलह मन मोह्यो, जाको निगम बतावै नेत ।।
अजर प्रकास जोति बिनु पावक, परम निरंतर देख ।।अनँत भानु ससि कोटिक निर्मल, केसो आतम लेख ।
केशवदास
पद
विरह -गगन तार गनत गइ रतिआ।।
जात न बनै अकेला जाना, खोजत मिलै न केहु संगतिआ।।शीवनरायन सुरति निरंतर, निरखि आपनो लीन्ह।
शिवनारायण
पद
निर्गुण ब्रह्म है न्यारा, कोइ समझो समझण हारा
शेष सहस मुख रटे निरंतर, रैन दिवस एक सारा।ऋषि मुनि और सिद्ध चौरासी, वो तैंतीस कोटि पचिहारा।।
सिंगाजी
पद
म्हारे हरिजू सूँ जुरलि सगाई हो ।
अरध उरध के मध्य निरंतर, सुखमन चौक पुराई हो ।।रबि ससि कुंभक अमृत भरिया, गगन मँडल मठ छाई हो ।
केशवदास
सूफ़ी लेख
हज़रत सैयद ज़ैनुद्दीन अ’ली चिश्ती
उनका घराना पाकीज़ा है इसलिए दिल को वो पसंद आ गया हैसेख जुनैदी सेवता पाप निरंतर बह जाई
सय्यद रिज़्वानुल्लाह वाहिदी
शबद
निज जेइ आत्म तेई जो नाथ बिरजैं एक और नाहीँ साथ
तीन त्रिलोक एक कर जानसरब निरंतर आप परवान
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
अरिल्ल
अरिल छंद - सुंदर साहब जानि के प्रेम लगावई
रबि ससि दूनों बाँधि निरंतर धावईकहै 'गुलाल' अतीथ तत्त घर छावई
गुलाल साहब
अरिल्ल
गीत किवत सलोक प्रबंध बखानिये
गीत किवत सलोक प्रबंध बखानियेतिन में हरि को नाम निरंतर आंनिंये