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कलाम
सभी ज़ात सिफ़ात से हो निर्मल जब साधू सुन माँह ध्यान धरेसुमर सुमर सिमरन से परे नारायण हरे नारायण हरे
मीराँ भीख
अरिल्ल
अरिल छंद - निर्मल रूप पार सों सुरति लगाइया
निर्मल रूप पार सों सुरति लगाइयाबिनु पग चालो चाल अनँदपुर जाइया
गुलाल साहब
अरिल्ल
अरिल छंद - निर्मल हरि को नाम ताहि ताहिं मानहीं
निर्मल हरि को नाम ताहि ताहिं मानहींभर्मत फिरें सब ठावँ कपट मन ठानहीं
गुलाल साहब
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दोहा
सद्गुरुमहिमा - निर्मल आनँद देत हो ब्रह्म रूप करि देत
निर्मल आनँद देत हौ ब्रह्म रूप करि देतजीव रूप की आपदा व्याधा सब हरि लेत
सहजो बाई
सूफ़ी लेख
महाराष्ट्र के चार प्रसिद्ध संत-संप्रदाय - श्रीयुत बलदेव उपाध्याय, एम. ए. साहित्याचार्य
जय जय देव निर्मल। निजजनाखिलमंगल। जन्म जरा अदल जाल
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
महाराष्ट्र के चार प्रसिद्ध संत-संप्रदाय- श्रीयुत बलदेव उपाध्याय, एम. ए. साहित्याचार्य
जय जय देव निर्मल। निजजनाखिलमंगल। जन्म जरा अदल जाल
हिंदुस्तानी पत्रिका
पद
वन्दना-नमो नमो गुरुदेव तत्ववेत्ता भ्रमभंजन।
निर्मल ग्यान विचार सार सत हृदय धारण।परमदेव परब्रह्म परमसुखदे निसतारण।।
रूपदास जी
दकनी सूफ़ी काव्य
तूतीनामा- चुन उस गोहराँ के समन्द का गम्भीर
नन्ही एक महबूब महताब सेलताफ़त में निर्मल निछल आब से
मुल्ला ग़व्वासी
सूफ़ी लेख
हिन्दी साहित्य में लोकतत्व की परंपरा और कबीर- डा. सत्येन्द्र
तहाँ कबीरा बंदिगी, कै कोई निजादस कबीर कवल प्रकासिया, ऊग्या निर्मल मूर
भारतीय साहित्य पत्रिका
छप्पय
वह अविगत गति अमित अगम अनभेव अषंडित।
निर्मल निगह निरंग निगम निहसंग निरनन।निज निरबंध निरसंध निधर निरमोह निचिंतन।।
भीषनजी दादूपंथी
सलोक
माया- माया करे मजूरू, छदिया जीअ जहान जा।
रहे पहिंजे हाल मे, को महबती मामूरु।जहिंखे निर्मल नूरू, सामी दिनो सतिगुरूअ।।
सामी
दोहा
छपै छंद अरु सोरठा, अरिल रूप यह जान।।
छपै छंद अरु सोरठा, अरिल रूप यह जान।अति निर्मल वैराग्यतर, सार सार परमान।।