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गूजरी सूफ़ी काव्य
ज़ुलेख़ा का विलाप (यूसुफ़ की मौत पर)
अने पलकों की मैं सुइयां बनाती,रंगों सेतीं सो मैं तागे पुरोती।
अमीन गुजराती
सूफ़ी लेख
गुजरात के सूफ़ी कवियों की हिन्दी-कविता - अम्बाशंकर नागर
यह किश्चरे ईरांमें सुलेमा से कहूगा।।जख्मी किया है तुझे तेरी पलकों की अनीने।
भारतीय साहित्य पत्रिका
सूफ़ी लेख
पीर नसीरुद्दीन ‘नसीर’
आया है ‘नसीर’ आज तमन्ना यही ले करपलकों से किए जाए सफ़ाई तेरे दर की
रय्यान अबुलउलाई
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बैत
आया है नसीर आज तमन्ना यही ले कर
आया है नसीर आज तमन्ना यही ले करपलकों से किए जाये सफ़ाई तेरे दर की
पीर नसीरुद्दीन नसीर
ना'त-ओ-मनक़बत
हम आएँ मदीना में कभी शाह-ए-मदीनाभीगी हुई पलकों से दु'आ माँग के जाना
अ'ब्दुल सत्तार नियाज़ी
साखी
प्रेम का अंग - नैनों की करि कोठरी पुतली पलँग बिछाय
नैनों की करि कोठरी पुतली पलँग बिछायपलकों की चिक डारि कै पिय को लिया रिझाए
कबीर
ग़ज़ल
सुकूँ की जुस्तुजू में अश्क आ पहुँचे हैं पलकों तकपनाहें ढूँडती है मौज-ए-आग़ोश-ए-साहिल हैं
फ़ना बुलंदशहरी
ना'त-ओ-मनक़बत
ये वक़्त है रहमत का वो सामने बैठे हैंदाता की गुज़र-गाह में पलकों को बिछाने दो