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सूफ़ी उद्धरण
तकलीफ़ आती है हमारे आ’माल की वजह से हमारे सहन करने की क्षमता के मुताबिक़ अल्लाह के हुक्म से हर तकलीफ़ एक पहचान है और ये एक बड़ी तकलीफ़ से बचाने के लिए आती है
हर तकलीफ़ एक पहचान है और ये एक बड़ी तकलीफ़ से बचाने के लिए आती है।
वासिफ़ अली वासिफ़
सूफ़ी लेख
अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की दूसरी क़िस्त
प्रथम उल्लास –(अपने-आप की पहचान)पहली किरण
सूफ़ीनामा आर्काइव
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सूफ़ी लेख
अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की पाँचवी क़िस्त
चतुर्थ उल्लास (परलोक की पहचान)पहली किरण -परलोक का सामान्य परिचय
सूफ़ीनामा आर्काइव
शबद
कैसा बनाया भगवान, खिलौना माटी का ।
कैसा बनाया भगवान, खिलौना माटी का ।कोई न सका पहचान, खिलौना माटी का ।।
स्वामी आत्मप्रकाश
सूफ़ी लेख
अज़ीज़ सफ़ीपुरी और उनकी उर्दू शा’इरी
जिसने देखा तुझे अल्लाह को पहचान लियासिर्र-ए-तौहीद की मुस्बित है रिसालत तेरी
ज़फ़र अंसारी ज़फ़र
सूफ़ी लेख
उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में - मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी
आस लगा रख पीत से रे उ’र्फ़ी अंजानमित्र-बचन की चाह बद शायद लें पहचान
ज़माना
सूफ़ी लेख
पीर नसीरुद्दीन ‘नसीर’
यूँ मिलते हैं, जैसे ना कोई जान ना पहचानदानिस्ता ‘नसीर’ आज वो अंजान बहुत हैं
रय्यान अबुलउलाई
सूफ़ी लेख
अमीर ख़ुसरो और इन्सान-दोस्ती - डॉक्टर ज़हीर अहमद सिद्दीक़ी
न पहचान पाए तो इतना समझ लो ।शब-ए-हिज्र की फिर सहर भी न होगी ।।
फ़रोग़-ए-उर्दू
सूफ़ी लेख
शाह नियाज़ बरैलवी ब-हैसिय्यत-ए-एक शाइ’र - मैकश अकबराबादी
मानूँ तुझे मैं अगर ले मुझे पहचान तूपूछे है हर इक से किसका है आ’शिक़ नियाज़
मयकश अकबराबादी
कविता
पिय चलती बेरियॉ, कछु न कहे समझाय ।
मानो कबहूं ना रही, वह सुख से पहचान ।मन में बालम अस रही, जनम न छोड़ति पाय ।
रानी रघुवंश कुमारी
सूफ़ी लेख
अल-ग़ज़ाली की ‘कीमिया ए सआदत’ की चौथी क़िस्त
तृतीय उल्लास (माया की पहचान)पहली किरण-संसार का स्वरूप, जीव के कार्य और उसका मुख्य प्रयोजन
सूफ़ीनामा आर्काइव
महाकाव्य
।। रसप्रबोध ।।
निपुन होइ जो सकल बिधि सोई चतुर बखान।बचन चतुर है एक पुनि किया चतुर पहचान।।568।।
रसलीन
सूफ़ी लेख
आगरा में ख़ानदान-ए-क़ादरिया के अ’ज़ीम सूफ़ी बुज़ुर्ग
नज़दीक है वो सबसे जहाँ उससे है मा’मूरजब चश्म खुली दिल की तो पहचान में आया
फ़ैज़ अली शाह
कलाम
सच है कि यहाँ उन की पहचान ज़रूरी हैपहचान का सामाँ है ख़ुद अपनी तिलावत में