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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
'अजब रुत्बा जनाब ख़्वाजा-ए-अजमेर का पायाशरी'अत में तरीक़त में शहंशाह वला पाया
हाफ़िज़ुल्लाह साबरी
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पद
मैं तो जाण साईं दूर है, तूझे पाया नेड़ा
मैं तो जाण साईं दूर है, तूझे पाया नेड़ा।रहणी रही सामरथ भई, मुझे पखवा तेरा।।
सिंगाजी
पद
चेतावनी -इतना जोग कमाय के साधू, क्या तूने फल पाया।
इतना जोग कमाय के साधू, क्या तूने फल पाया।जंगल जाके खाक लगाये, फेर चौरासी आया।।
कमाल
ना'त-ओ-मनक़बत
सुलैमाँ नाम पाया औज बख़्त-ओ-सद सआ'दत सेबना शहबाज़-ए-ला-सानी तहारत की लताफ़त से
साक़िब ख़ैराबादी
साखी
चेतावनी का अंग - फूँक फाँक फ़ारिग़ किया कहीं न पाया खोज
फूँक फाँक फ़ारिग़ किया कहीं न पाया खोजचेत सकै तो चेतिये ये माया के चोज
गरीब दास
ग़ज़ल
न पाया कुछ पता उस का ख़ुदा जाने कहाँ है वोज़माने भर में ढूँढ आया ख़ुदा जाने कहाँ है वो
असग़र निज़ामी
शे'र
जिन्हाँ इ’श्क़ हक़ीक़ी पाया मूँहों ना अलावत हूज़िकर फ़िकर विच रहण हमेशा दम नूँ क़ैद लागवन हू
सुल्तान बाहू
कलाम
जिन्हाँ इश्क़ हक़ीक़ी पाया मूँहों ना अलावत हूज़िकर फ़िकर विच रहण हमेशा दम नूँ क़ैद लागवन हू
सुल्तान बाहू
कलाम
जिन्हाँ शौह अलिफ़ थीं पाया फोल क़ुरआन न पढ़दे हूमारन दम मोहब्बत वाला दूर होयो न पर्दे हू
सुल्तान बाहू
सूफ़ी लेख
फ़िरदौसी - सय्यद रज़ा क़ासिमी हुसैनाबादी
फ़ारसी शाइ’री में उसने इंतिहाई कमाल पैदा किया, जिसके सुबूत में उसकी मशहूर-ए-आ’लम नज़्म शाह-नामा एक