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तन पिंजर दिल खायल कैदी
तन पिंजर दिल खायल कैदी मैनूँ साबत देख न फिरदीबे-परवाही ते ज़ालम फाही मैनूँ रड़के साँग नज़र दी
हाशिम शाह
साखी
बिरह का अंग - माँस गया पिंजर रहा ताकन लागे काग
माँस गया पिंजर रहा ताकन लागे कागसाहिब अजहुँ न आइया मंद हमारे भाग
कबीर
साखी
बिरह का अंग - पीर पुरानी बिरह की पिंजर पीर न जाय
पीर पुरानी बिरह की पिंजर पीर न जायएक पीर है प्रीति की रही कलेजे छाय
कबीर
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दकनी सूफ़ी काव्य
तूतीनामा- चुन उस गोहराँ के समन्द का गम्भीर
वो तोता जो पिंजर मे ते भार काड़निकाली जो थी उसके शाहपर वो पाड़
मुल्ला ग़व्वासी
पद
सुरति समानी ब्रह्म में, दुबिधा रह्यो न कोय ।
पंच तत्त गुन तीन के, पिंजर गढ़े अनंत ।मन पंछी सो एक है, पारब्रह्म को अतंत ।।
केशवदास
सूफ़ी लेख
सन्तों की प्रेम-साधना- डा. त्रिलोकी नारायण दीक्षित, एम. ए., एल-एल. बी., पीएच. डी.
दादू- 2. प्रीति जो मोरे पीव की पैठी पिंजर मांहि। रोम रोम पिव पिव करे दादू दूसर नाहिं।।
सम्मेलन पत्रिका
साखी
बिरह का अंग - कागा करँक ढँढोलिया मुट्ठी इक लिया हाड़
कागा करँक ढँढोलिया मुट्ठी इक लिया हाड़जा पिंजर बिरहा बसै माँस कहाँ तें काढ़