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कविता
अन्त की याद- मकड़ी जाला पूर 2 के कितने जीव सताती है।
मकड़ी जाला पूर पूर के कितने जीव सताती है।मक्खी मच्छड़ एक न छोड़े भुनगे तक को खाती है।।टेक।।
हकीम हाजी अली ख़ान
साखी
अंतर बाहिर एकरस, जो चेतन भर पूर।
अंतर बाहिर एकरस, जो चेतन भर पूर।बिभु नभ सम सो ब्रह्म है, नहिं नेरे नहिं दूर।।
साधु निश्चलदास
कुंडलिया
यह छबि लखि लखि रीझि कै प्रेम पूर छकछाय ।
यह छबि लखि लखि रीझि कै प्रेम पूर छकछाय ।कहत नई कहुँ दूर सों हँसिके दुहुन सुनाय ।।
छत्रकुंवरि बाई
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दोहा
हरि 'रहीम' ऐसी करी ज्यों कमान सर पूर
हरि 'रहीम' ऐसी करी ज्यों कमान सर पूरखेँचि आपनी ओर को डारि दियो पुनि दूर
रहीम
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
भला ताहि के होई।।1।।तजै गरूर पूर कहि बाना,
हिंदुस्तानी पत्रिका
सूफ़ी लेख
पदमावत में अर्थ की दृष्टि से विचारणीय कुछ स्थल - डॉ. माता प्रसाद गुप्त
(3) 50.6 जस औधान पूर होइ तासू। दिन दिन हिएँ होइ परगासू।
हिंदुस्तानी पत्रिका
गूजरी सूफ़ी काव्य
जुलेख़ा का क्रोध
नैन सूं पूर आँझूँ के बहाई,ज़बां सूं उन सुख़न यूंकर चिल्लाई।
अमीन गुजराती
सूफ़ी लेख
कविवर रहीम-संबंधी कतिपय किवदंतियाँ - याज्ञिकत्रय
हरि रहीम ऐसी करी, ज्यों कमान सर पूर।खैचि आपनी ओर को, डारि दियो पुने दूर।।
माधुरी पत्रिका
सूफ़ी लेख
कविवर रहीम-संबंधी कतिपय किंवदंतियाँ- याज्ञिकत्रय
हरि रहीम ऐसी करी, ज्यों कमान सर पूर। खैचि आपनी ओर को, डारि दियो पुने दूर।।
माधुरी पत्रिका
दकनी सूफ़ी काव्य
अर्जी पोंचावे हुज़ूर नामदेव लाया नज़र
नामा रोवे झुरझुर बहे अश्रून का पूरबिठू पसीने में चूर बिठू पंढरपुर में हुवे हैं
गोंडा
दकनी सूफ़ी काव्य
खुशनामा
सिफ़त करूँ मैं अल्ला कूँ बड़ा जो पूरन पूरक़ादिर कुदरत अज्ञात कार नेरे न दूर
शाह मीराजी शम्सुल शाख़
ग़ज़ल
न करता ज़ब्त अगर मैं गिर्या-ए-बे-इख़्तियारी कूँगुज़रता जिस तरफ़ ये पूर वीराने हुए होते
सिराज औरंगाबादी
खंडकाव्य
इंद्रावति -जीव कहानी खंड
जबसों आएउ राजा पाऊ। बसा सरीर पूर हो राऊ।बुद्ध बूझ जिउ कँह समुझावा। तब जिउ ध्यान राज पर लावा।