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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
दकनी सूफ़ी काव्य
पिया बाज प्याला पिया जाये ना
पिया बाज प्याला पिया जाये नापिया बाज इक तिल जिया जाये ना
कुली कुतुब शाह
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शे'र
मुरीद-ए-पीर-ए-मय-ख़ाना हुए क़िस्मत से ऐ नासेहन झाड़ें शौक़ में पलकों से हम क्यूँ सहन-ए-मय-ख़ाना
इब्राहीम आजिज़
सलाम
सलाम ऐ साक़ी-ए-मस्ताँ सलाम ऐ पीर-ए-मय-ख़ानासलाम ऐ मुर्शिद-ए-पाकाँ इमाम-ए-बज़्म-ए-रिंदाना
बेदम शाह वारसी
सलाम
सलाम ऐ आशिक़-ए-वहदत सलाम ऐ पीर-ए-मय-ख़ानःपिला कर बादः-ए-इरफ़ाँ किया आलम को मस्तानः
महताब शाह वारसी
ग़ज़ल
छुड़ा देती है फ़िक्र-ए-ग़ैर से तासीर-ए-मय-ख़ानामिली है अ’र्श की ज़ंजीर से ज़ंजीर-ए-मय-ख़ाना
मौलाना अ’ब्दुल क़दीर हसरत
ना'त-ओ-मनक़बत
ज़र्रा-ज़र्रा बन गया मय-ख़ाना-ए-शाह-ए-रुसुलवुस'अत-ए-कौनैन है पैमाना-ए-शाह-ए-रुसुल
क़ातिल अजमेरी
फ़ारसी कलाम
जोश ज़द मस्ती व चश्म-ए-दिलबराँ मय-ख़ान: शुदमुश्त-ए-ख़ाक-ए-मय परस्ताँ चर्ख़ ज़द-ओ-पैमान: शुद