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कवित्त
भक्तोद्गार- ध्रुव से प्रहलाद गज ग्राह से अहिल्या देखि
ध्रुव से प्रहलाद गज ग्राह से अहिल्या देखिस्योरी और गीध यौ विभीषन जिन तारे है।
ताज जी
दोहा
विनय मलिका - टेर सुनी प्रहलाद की नरसिंह हो बनि आय
टेर सुनी प्रहलाद की नरसिंह हो बनि आयहिरनाकुस को मारि कै जन को लीन बचाय
दया बाई
कवित्त
होरी खेलन की सत भारी ।
भरम सब दूर गुमारी ।ध्रुव प्रहलाद विभीषण खेले, मीरा करमा नारी ।
प्रताप कुंवरी बाई
मनहर
।। मनहर ।।
नृसिंह ओतार धार प्रहलाद उवारे हैं।।रिषभ औतार आप बडे ही विख्यात भये,
महात्मा प्यारेराम जी
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पद
श्रीगोपाल गोविंद गदाधर पल छन रट मन मेरे
गणिका की निजधाम दयो तेरो पापतो ये हर्यो रेध्रुव प्रहलाद बिभीखन नारद निसिदिनी नाम उचारे