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शे'र
निकल कर ज़ुल्फ़ से पहुँचूँगा क्यूँकर मुसहफ़-ए-रुख़ परअकेला हूँ अँधेरी रात है और दूर मंज़िल है
अकबर वारसी मेरठी
ना'त-ओ-मनक़बत
फ़िराक़-ओ-हिज्र के हालात-ए-ग़म का माजरा सुन लेगुज़रती है जो दिल पर ऐ शह-ए-हर-दोसरा सुन ले
शकील बदायूँनी
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मुख़म्मस
एक ज़माना था कि हिज्र-ए-यार में सीना-फ़िगारजुस्तुजू में उस की फिरता था ब-हर शहर-ओ-दयार
आग़ा मुहम्मद दाऊद
शे'र
मुझे इ’श्क़ ने ये पता दिया कि न हिज्र है न विसाल हैउसी ज़ात का मैं ज़ुहूर हूँ ये जमाल उसी का जमाल है
अज़ीज़ सफ़ीपुरी
शे'र
विसाल-ए-यार जब होगा मिला देगी कभी क़िस्मततबीअ'त में तबीअ'त को दिल-ओ-जाँ में दिल-ओ-जाँ को
राक़िम देहलवी
ना'त-ओ-मनक़बत
वस्ल इक हक़ीक़त थी हिज्र इक फ़साना थाहम थे जब मदीना में वो भी क्या ज़माना था
शाह अब्दुल क़दीर बदायूँनी
कलाम
ये कहाँ थी मेरी क़िस्मत कि विसाल-ए-यार होतामेरी तरह काश उन्हें भी मेरा इंतिज़ार होता