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अभंग
बहते को बह जाने दो मत पकड़ो थोर।
बहते को बह जाने दो मत पकड़ो थोर।समझाये समझे नहीं दे धक्के दो औऱ।।
लालदास
दोहरा
इक बह कोल ख़ुशामद करदे
इक बह कोल ख़ुशामद करदे पर ग़रज़ी होन कमीनेइक बे-परवाह न पास खड़ोवन पर होवन यार नगीने
हाशिम शाह
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पद
या तरिवर में एक पखेरू भोग सरस बह डोलै रे
या तरिवर में एक पखेरू भोग सरस बह डोलै रेबाकी संघ लखै नहि कोई कौन भाव सों बोलै रे
कबीर
ग़ज़ल
वहाँ भी कोई बह कर अश्क पहुँचा है मगर अपनाबहुत याद आ रहा है आज जो ग़ुर्बत में घर अपना
ख़्वाजा अज़ीज़ुल हसन मज्ज़ूब
दोहरा
ए गुल ! मीत न जान किसे नूं
है इक दरद तेरा बुलबुल नूं, जेहड़ी हिजर तेरे बह रोवे ।हाशम दरद होवे जिस तन नूं, सोई नाल तेरे बह रोवे ।
हाशिम शाह
बैत
अगर ख़ुफ़िया दह दिल ब-दस्त आवरी
अगर ख़ुफ़िया दह दिल ब-दस्त आवरीअज़ाँ बह कि सद रह शबीख़ूँ बरी
सादी शीराज़ी
सूफ़ी लेख
तारीख़-ए-वफ़ात निज़ामी गंजवी
का रास्ता शुद बह बेहतरीन हालदर सल्ख़-ए-रजब सा-ओ-फ़ा-ओ-दाल
क़ाज़ी अहमद अख़्तर जूनागढ़ी
दोहा
अहमद' लड़का पढ़न में कहु किन झोका खाय।
'अहमद' लड़का पढ़न में कहु किन झोका खाय।तन घट बह विद्या रतन भरत हिलाय हिलाय।।
अहमद
महाकाव्य
।। रसप्रबोध ।।
तीसरि अनुसैना विषै प्रथम भेद बह गाइ।मीत गयो संकेत धन सकत न केहू जाइ।।289।।
रसलीन
सूफ़ी लेख
बिहारी-सतसई की प्रतापचंद्रिका टीका - पुरोहित श्री हरिनारायण शर्म्मा, बी. ए.
इक भीजै चहलै परैं, बूडे बह हजार। कितौ न औगुन जग करै, वै नै चढती वार।।44।।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हज़रत सैयद ज़ैनुद्दीन अ’ली चिश्ती
उनका घराना पाकीज़ा है इसलिए दिल को वो पसंद आ गया हैसेख जुनैदी सेवता पाप निरंतर बह जाई