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दकनी सूफ़ी काव्य
पिया बाज प्याला पिया जाये ना
पिया बाज प्याला पिया जाये नापिया बाज इक तिल जिया जाये ना
कुली कुतुब शाह
सोरठा
'रहिमन' बहरी बाज गगन चढ़े फिर क्यूँ तिरै
'रहिमन' बहरी बाज गगन चढ़े फिर क्यूँ तिरैपेट अधम के काज फेरि आय बंधन परै
रहीम
ग़ज़ल
क्यूँ न ले गुलशन से बाज उस अर्ग़वाँ-सीमा का रंगगुल से है ख़ुश-रंग-तर उस के हिनाई-पा का रंग
मीर मोहम्मद बेदार
पद
अनाहत नाद -मुरलिया बाज रही कोइ सुने संत धर ध्यान।।
मुरलिया बाज रही कोइ सुने संत धर ध्यान।।सो मुरली गुरु मोहिं सुनाई लगे प्रेम के बान।।
शिवदयाल सिंह
गूजरी सूफ़ी काव्य
मेरे जीव कूँ पियु बाज आराम नईं
मेरे जीव कूँ पियु बाज आराम नईं,बजुज़ इश्क़बाज़ी मुझे काम नईं।
सय्यद इस्हाक़ सरमस्त
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कुंडलिया
साईं घोड़े आछतहि, गदहन पायो राज।
साईं घोड़े आछतहि, गदहन पायो राज।कौआ लीजै हाथ में, दूरि कीजिये बाज।।
गिरिधर कविराय
दकनी सूफ़ी काव्य
मसनवी हुस्न व दिल
भोत मेरे जिव कूँ था तुज सूँ आधारबाज मेरे मुल्क रहेगा बरक़रार
शैख़ ज़ुहूरुद्दिन हातिम
दकनी सूफ़ी काव्य
तूतीनामा- चुन उस गोहराँ के समन्द का गम्भीर
कही यूँ जो ऐ तू है शीरीं ज़बाँनहीं कोई तुज बाज महरम यहाँ
मुल्ला ग़व्वासी
दकनी सूफ़ी काव्य
वाह वाह बुलबुले गुलज़ार इश्क़
है मेरे ग़ैरत में ये नामोस व नंगजिसको मेरे बाज जिसका दम अछे
वजदी
पद
बलाय ज्याउं मैं तेरे चरण उपर सुं
बलाय ज्याउं मैं तेरे चरण उपर सुं।।ध्रु0।।महबूब साहेब तूही, पिरतम तुज बाज नहीं ।
केशव स्वामी
पद
दौलत निसान बान धरे खुदी अभिमान,
घेरा डेरा गज बाज झूठो है सकल साज,बादि हरिनाम कोऊ काज नाहिँ अंत कै ।
केशवदास
दकनी सूफ़ी काव्य
बलाय ज्याऊँ मै तो चरण ऊपर सूँ ।
बलाय ज्याऊँ मै तो चरण ऊपर सूँ ।महबुब साहेब तू ही पिरतम तुम बाज नहीं
केशव स्वामी
दकनी सूफ़ी काव्य
मसनवी इसरार इश्क़
जल्द चर्चा के अब क़त्ल उस किये बाजहुआ जीना मेरे तई हैं हराम आज