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पहेली बूझो पंडिता, दो दिन केती मास।
पहेली बूझो पंडिता, दो दिन केती मास।दिया बूझरी एक तल, जानो बरस पचास।।
शेख़ अहमद खट्टू
पद
बूझो तो 'दिलदार' तुम अपने मन हक़ की अता को
बूझो तो दिलदार तुम अपने मन हक़ की अता कोआँख दिया है देखे को और कान सुने को सदा को
कवि दिलदार
दोहा
तालकल्ल दोउ कहै ब्योरा बूझो कोय
तालकल्ल दोउ कहै ब्योरा बूझो कोयइक बक़ा एक फ़ना है 'पेम' पुराने लोय
बरकतुल्लाह पेमी
दोहरा
देखो री मन बूझो री देखो अंव बानी
देखो री मन बूझो री देखो अंव बानीसब ही रंग नीर कै माया रंग समाया पानी
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
बूझो तो बूझो नहीं चलो मेरे संग।।-चिलम
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
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सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
बूझो तो बूझो नहीं चलो मेरे संग।। -चिलम
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
दकनी सूफ़ी काव्य
जवाहर उल इसरारे अल्ला 1.3 सारी पिरथी ऊपर पिव हूँ
बोल हमारे तुम्हें न बूझोजी रे न बूझो तो ले लूझो
माशूक़ अल्लाह
दकनी सूफ़ी काव्य
रोज़ोतुल इतहार
न बूझो तुम के यह सर्व ख़ुश रंगचमन उँगली रखा दातो में हो दंग
नवाज़िद अली ख़ान शैदा
दोहा
बीज बिरछ नहिं दोय हैं रूई चीर नहीं दोय
बीज बिरछ नहिं दोय हैं रूई चीर नहीं दोयदध तरंग नहीं दोय हैं बूझो ज्ञानी लोय
बरकतुल्लाह पेमी
पद
देखूँ हूँ अहवाल जहाँ का अजब तरह पर है हैहात
भरा हुआ है जिसके अंदर बूझो तो सारा आफ़ातहै बेहतर तुम छोड़ो उसकी उल्फ़त मारो उस पर लात
कवि दिलदार
पद
देखा है रिंदों की तूने ज़ाहिद कबहू सोहबत
नहीं रिया का जामा पहिरैं गरचे उठाएँ ज़हमतबूझो तो 'दिलदार' हैं बे-शक ये सब वाजिब-ए-रहमत
कवि दिलदार
पद
दस द्वार के महल के अंदर कौन आन के खेला है
किस ने फुलाया इस बाग़ के अंदर जूही बेला हैबूझो तो 'दिलदार' इसे वो किस साहब का मेला है