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पद
ख़ुद-बीं के तुम पास न बैठो वो हक़ से बेगाना है
ख़ुद-बीं के तुम पास न बैठो वो हक़ से बेगाना हैसोहबत उस की हर दाना को ग़म ग़ुस्से का खाना है
कवि दिलदार
शे'र
अकबर वारसी मेरठी
ग़ज़ल
दलील-ए-सुब्ह रौशन है सियह शाम-ए-अलम साक़ीख़ुदा का बा'द हर मुश्किल के होता है करम साक़ी
वासीफ़ आलम मुआज्ज़मी
ग़ज़ल
मिरा दिल न था अलम-आश्ना कि तिरी अदा पे नज़र पड़ीवो न जाने कौन सा वक़्त था कि बिना-ए-ख़ून-ए-जिगर पड़ी