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दकनी सूफ़ी काव्य
यूसुफ़ जुलेखा
हमारा तो जिव उस सू बेज़ार हैतो बेज़ार सब बल्के सेज़ार है
हाशमी बीजापुरी
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ग़ज़ल
अगर मसरूर हो दिल से तो क्यूँ बेज़ार हो मुझ सेअगर बेज़ार हो मुझ से तो दिल में मेहमाँ क्यूँ हो
मयकश अकबराबादी
दकनी सूफ़ी काव्य
हालात-ए-विलादत आँ-हज़रत
मगर हैं आमना के सात बेज़ारउसे आने कतीं देना नहीं बार