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कुंडलिया
साई बैर न कीजिये, गुरु पंडित कवि यार।
साई बैर न कीजिये, गुरु पंडित कवि यार।बेटा बनिता पंवरिया, यज्ञ करावनहार।।
गिरिधर कविराय
दोहा
रहिमन ओछे नरन सों बैर भलो ना प्रीति
'रहिमन' ओछे नरन सों बैर भलो ना प्रीतिकाटे चाटै स्वान के दोऊ भाँति विपरीति
रहीम
दोहा
बैरी महा-बरियार है बैर करत हर-आन
बैरी महा-बरियार है बैर करत हर-आनदास तुम्हारी आस है पत राखो भगवान
अमीनुद्दीन वारसी
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कुंडलिया
साई बेटा बाप के, बिगरे भयो अकाज।
कह गिरिधर कविराय, युगन याही चलि आई।पिता पुत्र के बैर, नफा कहु कौने पाई।।
गिरिधर कविराय
महाकाव्य
।। रसप्रबोध ।।
परिपोषक जो कोप कै वहै रौद्र रस जानु।दुसह बैर बैरी लखन यो बिभाव पहिचानु।।1071।।
रसलीन
सूफ़ी लेख
उ’र्फ़ी हिन्दी ज़बान में - मक़्बूल हुसैन अहमदपुरी
बैरी जो कोउ जान लूं ताको ऐ’ब बताऊँनाम धरन की लाज से बैर से बचता जाऊँ
ज़माना
कविता
अन्योक्ति पंचक- बगला बैठा ध्यान में प्रातः जलके तीर
फिर भी आवै शरण बैर जो तजके अगला।उनके भी तू प्राण हरे, रे ! छी ! छी ! बगला।।
सय्यद अमीर अली मीर
सूफ़ी लेख
सूर के माखन-चोर- श्री राजेन्द्रसिंह गौड़, एम. ए.
मै बालक बहियन को छोटो, छीको किस विधि पायो। ग्वाल-बाल सब बैर परे है, बरबस मुख लपटायो।।
सम्मेलन पत्रिका
सूफ़ी लेख
अबुलफजल का वध- श्री चंद्रबली पांडे
यह सुनि बोल्यौ जादौ गौर, पहिलौ सौ अब नाहीं ठौर। फेरि अकब्बर के फरमान, कछवाहे सौ बैर निधान।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
हज़रत महबूब-ए-इलाही ख़्वाजा निज़ामुद्दीन औलिया देहलवी के मज़ार-ए-मुक़द्दस पर एक दर्द-मंद दिल की अ’र्ज़ी-अ’ल्लामा इक़बाल
बैर है बाद-ए-बहारी को मेरे गुलज़ार सेआज-कल अस्ग़र जो थे अकबर हैं और मौला ग़ुलाम
सूफ़ीनामा आर्काइव
पद
मनोमारण-महत्व -बिषय बासना छुटत न मन से, नाहक नर बैराग करो।
सो रसना बस कियो न जोगी, नाहक इंद्री साधि मरो।।जैसे मृगा चरत जंगल में, न काहू सों बैर करो।
शिवनारायण
गीत
मुमताज़ गंगोही
गीत
मुझे रोने बिना कोई काज नहीं संसार हँसे कभी लाज नहींन तो पियो मिले न चैन पड़े ये पीत बैर बना मारत है