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दोहा
मुख ग्रीषम पावस नयन तन भीतर जड़काल
मुख ग्रीषम पावस नयन तन भीतर जड़कालपिय बिन तिय तीन ऋतु कबहुँ न मिटैं 'जमाल'
जमाल
साखी
देहा भीतर श्वास है, श्वासा भीतर जीव।
देहा भीतर श्वास है, श्वासा भीतर जीव।जीवे भीतर वासना, किस विध पाइये पीव।।
बाबा लाल
पद
चेतावनी -घट भीतर तू जाग री, है सुरत पुरानी ।
घट भीतर तू जाग री, है सुरत पुरानी ।बिना देश झांकत रही, सब मर्म भुलानी।।
शिवदयाल सिंह
दोहरा
हियरे भीतर है हिया तहँ महँ कंत बसाय
हियरे भीतर है हिया तहँ महँ कंत बसायतहाँ बसेरा जो करै सोभै पियहि मिलाय
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
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दोहा
'औघट' मस्जिद मंदिर भीतर एक ध्यान समाए
'औघट' मस्जिद मंदिर भीतर एक ध्यान समाएपीछे देवें राम दरस जो पहले दुबिधा जाये
औघट शाह वारसी
साखी
बिरह का अंग - तन भीतर मन मानिया बाहर कहूँ न लाग
तन भीतर मन मानिया बाहर कहूँ न लागज्वाला तें फिर जल भया बुझी जलन्तो आग
कबीर
साखी
बिरह का अंग - हिरदे भीतर दव बलैं धुआँ न परगट होय
हिरदे भीतर दव बलैं धुआँ न परगट होयजा के लागी सो लखै की जिन लाई सोय
कबीर
साखी
प्रेम का अंग - जो जागत सो स्वप्न में ज्यों घट भीतर स्वास
जो जागत सो स्वप्न में ज्यों घट भीतर स्वासजो जन जा को भावता सो जनता के पास
कबीर
शबद
जिय तौं जोगी आप परवान बाहर भीतर एक कर जान
जिय तौं जोगी आप परवान बाहर भीतर एक कर जाननिज कै आँखों सुनहु विचार सरब निरंतर एक अंकार
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
सूफ़ी लेख
संत साहित्य - श्री परशुराम चतुर्वेदी
भीतर कहौं तो झूठा लो।बाहर भीतर सकल निरंतर,
हिंदुस्तानी पत्रिका
चौपाई
जैसो 'कुम्भ' 'अम्भ' मँह थेव।
बाहर भीतर 'कहा' न जाय।'सरब निरंतर' एकै 'काय'।।
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-ताला(117) भीतर चिलमन बाहर चिलमन, बीच कलेजा धड़के।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
-ताला (117) भीतर चिलमन बाहर चिलमन, बीच कलेजा धड़के।
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
राग आधारित पद
राग बसंत- जल थल म्हेल और आकास।
बाहर 'भीतर' कहा न जाय।सरब निरंतर एकै काय।।
अब्दुल क़ुद्दूस गंगोही
दकनी सूफ़ी काव्य
तूतीनामा- चुन उस गोहराँ के समन्द का गम्भीर
भीतर ते सो इन जिवड़ा वारतीउमंग सात उन .......................
मुल्ला ग़व्वासी
गूजरी सूफ़ी काव्य
हश्रनामा
हेगा मुल्क गुजरात भीतर वतन,उसे ख़ुश कहते हेंगे पीरान पट्टन।