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ना'त-ओ-मनक़बत
महरम-ए-सिर्र-ए-ख़फ़ी हज़रत फ़रीदुद्दीन पीरवाक़िफ़-ए-राज़-ए-नबी हज़रत फ़रीदुद्दीन पीर
अफ़ज़ल हुसैन अस्दक़ी
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ग़ज़ल
मुझ पर ऐ महरम-ए-जाँ पर्दा-ए-असरार कूँ खोलख़्वाब-ए-ग़फ़लत सें उठा दीदा-ए-बेदार कूँ खोल
सिराज औरंगाबादी
कलाम
अपना महरम जो बनाया तुझे मैं जानता हूँमुझ से मुँह फिर क्यूँ छुपाया तुझे मैं जानता हूँ
शाह ख़ामोश साबरी
सूफ़ी लेख
हज़रत शैख़ फ़ख़्रुद्दीन इ’राक़ी रहमतुल्लाह अ’लैह
न-शुद जाँ महरम-ए-असरार-ए-जानाँबराँ महरूम-ए-ना-महरम ब-गिर्यम
सूफ़ीनामा आर्काइव
दोहरा
जो बातिन उसि नाम मुहब्बत ज़ाहर हुसन कहावे
जो बातिन उसि नाम मुहब्बत ज़ाहर हुसन कहावेहुसन मुहब्बत महरम तोड़ों क्युं महरम शरमावे
मियां मोहम्मद बख़्श
फ़ारसी सूफ़ी काव्य
बस्तम मन गर्दने-ए-जाँ बुर्दम पेशश ब-निशाँमहरम-ए-इश्क़ अस्त म-कुन महरम-ए-ख़ुद रा तू बहिल
रूमी
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
अता पता मत पूछो हमसे। कुछ तो महरम होगी उससे।।-अंगिया
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
सूफ़ी लेख
खुसरो की हिंदी कविता - बाबू ब्रजरत्नदास, काशी
अता पता मत पूछो हमसे। कुछ तो महरम होगी उससे।। -अंगिया
नागरी प्रचारिणी पत्रिका
दकनी सूफ़ी काव्य
तूतीनामा- चुन उस गोहराँ के समन्द का गम्भीर
कही यूँ जो ऐ तू है शीरीं ज़बाँनहीं कोई तुज बाज महरम यहाँ